21वीं सदी में ज्ञान को एक प्रमुख प्रेरक बल के रूप में पहचान गया है और वैश्विक प्रतियोगात्मक इकाई के रूप में उभरने की भारत की क्षमता अपने ज्ञान संसाधनों पर पूरी तरह से निर्भर करेगी। पीढ़ीगत बदलाव को प्रोत्साहित करने के लिए एक सर्वांगी बदलाव की आवश्यकता है जो कि सम्पूर्ण ज्ञान स्पेक्ट्रम के संबंधो को सम्बोधित करना चाहता है। इस अतिविशाल प्रयत्न में ज्ञान सेक्टर में सुधार के लिए एक रोडमैप तैयार करना शामिल है जो कि ज्ञान तक पहुंच को बढ़ाने, शिक्षा प्रणालियों और उनकी सुपुर्दगी को मौलिक रूप से सुधारने, अनुसंधान को पुनः रूप देने, विकास और नवप्रवर्तन ढांचे और बेहतर सेवाओं के उत्पादन के लिए ज्ञान प्रयोगों को काम में लाने पर ध्यान केन्द्रित करता है। ऐसी ज्ञान क्रांति जोकि क्षमता बनाने और गुणवत्ता का उत्पादन करने को सोचती हैं वह 25 से कम आयु वाले 550 करोड़ को शामिल करके अपनी मानव पूंजी को शक्ति प्रदान करने में हमारे देश को सक्षम बनाएगी। हमारा जनसांख्यिकीय लाभांश एक जबरदस्त अवसर और साथ-साथ एक निर्भीक कार्य प्रदान करता है जिसमें एक नए ज्ञान अभिमुख उदाहरण के लिए सृजनात्मक रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
इस दृश्यलेख को ध्यान में रखते हुए भविष्य की चुनौतियों को पूरा करने में भारत को सक्षम बनाने के लिए हमारे ज्ञान संबंधित संस्थानों और आधारभूत ढांचें के सुधार के लिए एक ब्लूप्रिंट बनाने के लिए श्री सैम पित्रोदा की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री डाॅ॰ मनमोहन सिंह द्वारा जून 2005 में राष्ट्रीय ज्ञान कमिशन (एनकेसी) की स्थापना की गई थी। एनकेसी के विचारार्थ विषय है:
- 21वीं शताब्दी का ज्ञान चुनौतियों को पूरा करने के लिए शिक्षा प्रणाली में उत्कृष्टता स्थापित करना और ज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक श्रेष्ठता में वृद्धि करना।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं में ज्ञान के सृजन को बढ़ावा देना।
- बौद्धिक सम्पदा अधिकारों में संलिप्त संस्थानों के प्रबंधन में सुधार करना।
- कृषि और उद्योग में ज्ञान प्रयोज्यता को बढावा देना।
- नागरिकों के लिए सरकार को एक प्रभावी, पारदर्शी और जवाबदेह सेवा प्रदाता बनाने में ज्ञान क्षमताओं के प्रयोग को बढ़ावा देना और चारों ओर शेयरिंग को बढ़ावा देना।