परिष्करण विद्यालय

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परिष्करण विद्यालय को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है "एक निजी विद्यालय जो विद्यार्थियों के चहुमुखी व्यक्तित्व विकास प्रशिक्षण, सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों, एवं मूल्यों सहित कौशलों के सेट पर बल प्रदान करता है" । इसका नाम यह दर्शाता है कि यह किसी विद्यालय अथवा महाविद्यालय की शिक्षा का अनुपालन करता है तथा शैक्षणिक अनुभव को पूर्ण करने का आशय रखता है। इसमें एक गहन पाठ्यक्रम अथवा एक-वर्षीय कार्यक्रम हो सकता है। 

व्यक्तित्व विकास

किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके संपूर्ण जीवन में उसके द्वारा लिए गए निर्णयों का समग्र संयोजन होता है (ब्रेडशॉ)। ऐसे अनेक नैसर्गिक प्राकृतिक आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारक होते हैं जो हमारे व्यक्तित्व के विकास में योगदान करते हैं। सामाजीकरण की प्रक्रिया के अनुसार "व्यक्तित्व हमारे मूल्यों, आस्थाओं और आकांक्षाओं को भी प्रभावित करता है। आनुवांशिक कारक जो व्यक्तित्व विकास में योगदान देते हैं, ऐसा उस विशिष्ट सामाजिक परिवेश के साथ संपर्क के फलस्वरूप करते हैं जिसमें लोग रहते हैं।"

व्यक्तित्वों के अनेक प्रकार होते हैं, जैसाकि कैथरीन कुक ब्रिग्स और इज़ाबिल ब्रिक्स मायेर्स ने अनेक व्यक्तित्व वर्गीकरण परीक्षणों में दर्शाया है। ये परीक्षण केवल परीक्षा के मापदण्डों द्वारा निर्णित किए गए उत्तरों के अनुसार हासिल किए गए प्रारंभिक निष्कर्षों के आधार पर केवल जानकारी ही उपलब्ध कराते हैं। व्यक्तित्व विकास पर अन्य सिद्धांत हैं - जीन पिथागेर अवस्थाएं तथा सिगमंद फ्रेड्स सिद्धांत में व्यक्तित्व विकास जो पहचान, अहम और अति-अहम् में संपर्क के माध्यम से निर्मित हुआ है।

तकनीकी कौशल

कौशल पूर्व-निर्धारित परिणामों को कार्यान्वित करने की सीखी गई क्षमता है जिसमें समय और ऊर्जा का न्यूनतम प्रयोग किया जाता है। कौशलों को प्राय: क्षेत्र-सामान्य एवं क्षेत्र-विशिष्ट कौशलों में विभाजित किया जाता है। उदाहरण के लिए कार्य के क्षेत्र में, कुछ सामान्य कौशलों में शामिल होगा - समय-प्रबंधन, समूह कार्य और नेतृत्व, स्व-अभिप्रेरणा और अन्य, जबकि क्षेत्र-विशिष्ट कौशल केवल कुछ ही नियोजनों के लिए उपयोगी होंगे। कौशलों में सामान्यत: कौशल को दर्शाने और प्रयोग करने के लिए स्तर का आकलन करने हेतु कतिपय पर्यावरणीय उत्प्रेरणा परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।

लोगों को आधुनिक अर्थव्यवस्था में योगदान देने तथा इक्कीसवीं शताब्दी के प्रौद्योगिकीय समाज में अपना स्थान लेने क लिए व्यापक कौशलों की आवश्यकता होती है। कार्यस्थल शिक्षण तथा निष्पादन वृत्तिकों का अध्ययन करने वाली एक अलाभप्रद एसोसिएशन 'अमेरिकन सोसाइटी फॉर ट्रेनिंग एंड डेवलपमेंट' (एएसटीडी) ने यह दर्शाया है कि प्रौद्योगिकी के माध्यम से, कार्यस्थल में परिवर्तन हो रहा है तथा कौशल भी परिवर्तित हो रहे हैं जिसके फलस्वरूप कर्मचारियों को भी इनके साथ बदलने की आवश्यकता होगी। अध्ययन ने ऐसे 16 मूल कौशलों की पहचान की है जिनकी भविष्य के कार्यस्थलों में भविष्य के कार्मिकों के लिए आवश्यकता होगी।

सम्मिलित कौशलों को संबंधित संस्थाओं द्वारा अथवा तृतीय पक्षकार संस्थाओं द्वारा परिभाषित किया जा सकता है। इन्हें सामान्यत: कौशल ढांचे के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है जिन्हें सक्षमता ढांचा अथवा कौशल मेट्रिक्स भी कहा जाता है। इसमें कौशलों की सूची तथा एक ग्रेडिंग प्रणाली शामिल होती है और एक परिभाषा होती है जिसका अर्थ किसी निश्चित कौशल के लिए एक निर्धारित स्तर होता है। अधिक उपयोगी बनने के लिए कौशल प्रबंधन का संचालन एक सतत् प्रक्रिया के रूप में किए जाने की आवश्यकता होती है तथा उनके रिकार्ड किए गए सेटों को नियमित रूप से अद्यतन बनाया जाना होता है। ये अपडेट तब प्रस्तुत किए जाने चाहिए जब कर्मचारियों के नियमित सम्बंधित प्रबंधक समीक्षा करते हैं और निश्चित तौर पर भी, जब उनके कौशल सेटों में परिवर्तन होता है।


नैतिक शिक्षा

नैतिकता (लैटिन नैतिकता "शिष्टाचार, चरित्र, समुचित व्यवहार" से) आचरण और नयाचार की ऐसी प्रणाली है जो परिशुद्ध होती है। नैतिकता के तीन मुख्य अर्थ होते हैं।

इसकी 'वर्णात्मक' भावना में, नैतिकता का आशय है वैयक्तिक अथवा सांस्कृतिक मूल्य, आचरण संहिता अथवा सामाजिक नैतिकता जो मानव समाज में सही या गलत के बीच भेद करती है। इस तरीके से नैतिकता का वर्णन करने का अर्थ यह दावा करना नहीं है कि विषय परक रूप से क्या सही है और क्या गलत, परंतु केवल यह इंगित करना है कि लोगों द्वारा क्या सही माना जाता है और क्या गलत। अधिकांशत: सही और गलत कार्य को इस प्रकार व्यक्त किया जाता है क्योंकि उनसे उनके लाभ अथवा हानि का पता चलता है, परंतु यह संभव है कि अनेक नैतिक धारणाएं पूर्वाग्रह, अज्ञानता अथवा घृणा पर आधारित हों। इस भावना का निवारण भी वर्णात्मक नयाचार द्वारा किया जाता है।

इसकी 'सामान्य' भावना में, नैतिकता का आशय प्रत्यक्षत: क्या सही है और क्या गलत, से जुड़ा हुआ है जिसमें यह ध्यान नहीं रखा जाता है कि लोग क्या सोचते हैं। इसे किसी निश्चित परिस्थि‍ति में किसी आदर्श 'नैतिक' व्यक्ति के आचरण के रूप में परिभाषित किया जाता है। शब्द का यह प्रयोग 'निश्चियात्मक' वक्तव्यों से प्रभावित है जैसे 'यह कृत्य अनैतिक है', बजाए इसके कि इस प्रकार का वर्णन किया जाए "कई लोग समझते हैं कि यह कृत्य अनैतिक है। इसे प्राय: नैतिक धारणावाद से चुनौती मिलती है, जिसमें किसी कड़ी, सार्वभौमिक, उद्देश्यपूर्ण नैतिक 'सत्य' को अस्वीकार कर दिया जाता है तथा उसे नैतिक वास्तविकता से सहायता मिलती है जिसमें इस 'सत्य' की विद्यमानता को स्वीकार किया जाता है। 'नैतिकता' शब्द के सामान्य प्रयोग का निवारण भी सामान्य नयाचार द्वारा किया जाता है।

नैतिकता को नयाचार के पर्याय के रूप में भी परिभाषित किया जाता है, जो ऐसा क्षेत्र है जिसमें उपर्युक्त दो अर्थ शामिल होते हैं तथा नैतिक परिक्षेत्र के व्यवस्थित दार्शनिक अध्ययन के भीतर कुछ अन्य अर्थ भी होते हैं। नयाचार कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढता है जैसे किसी निर्दिष्ट स्थिति में नैतिक परिणाम किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है (अनुप्रयुक्त नयाचार), नैतिक मूल्यों का अवधारण किस प्रकार किया जाए (सामान्य नयाचार), किन नैतिकताओं का लोग वस्तुत: अनुपालन करते हैं वर्णनात्मक नयाचार), नयाचार अथवा नैतिकता की सैद्धांतिक प्रकृति क्या है जिसमें यह भी शामिल है कि क्या इसका कोई वस्तुपरक औचित्य है (मीमांसा - नयाचार), तथा नैतिक क्षमता अथवा नैतिक एजेंसी किस प्रकार विकसित होती है और इसकी प्रकृति क्या है (नैतिक मनोविज्ञान)।

एक मुख्य मुद्दा 'नैतिकता' और "अनैतिकता" शब्दों के अर्थ से संबधित है। नैतिक वास्तविकतावाद यह मानता है कि सत्य नैतिक वक्तव्य होते हैं जो विषय परक नैतिक तथ्यों की सूचना देते हैं, जबकि नैतिक वास्तविकतावादी-विरोधी यह मानते हैं कि नैतिकता समाज में विद्यमान मानदण्डों में से किसी एक से ली जाती है (सांस्कृतिक वास्तविकतावाद); यह केवल वक्ता की भावनाओं की अभिव्यक्ति है (संवेदनावाद); एक आशयित अनिवार्यता है (सार्वभौमिक रूढ़िवादिता); अथवा यह गलत रूप से यह धारणा बनाती है कि वस्तुपरक नैतिक तथ्य होते हैं (त्रुटि सिद्धांत)। कुछ चिंतक यह मानते हैं कि सही व्यवहार की कोई सही परिभाषा नहीं है, कि नैतिकता का निर्णय विशिष्ट धारणा प्रणालियों और सामाजिक-ऐतिहासिक संदर्भों के मानकों के भीतर विशेष परिस्थितियों के संदर्भ में निर्णित किया जा सकता है। यह स्थिति जिसे नैतिक तुलनावाद कहा जाता है, प्राय: अपने दावे के समर्थन के लिए साक्ष्य के रूप में मानव विज्ञान से अनुभवजन्य साक्ष्य उद्धृत करती है। इसका विरोधी दृष्टिकोण कि सार्वभौतिक, शाश्वत और नैतिक सत्य विद्यमान हैं, नैतिक सार्वभौमिकतावाद कहा जाता है। नैतिक विश्वविद्यालय यह मान सकते हैं कि सामाजिक अनुरूपता की ताकतें उल्लेखनीय रूप से नैतिक नियमों को आकार प्रदान करती हैं, परंतु इससे इंकार करती है कि सांस्कृतिक मानदण्ड और प्रथाएं नैतिक दृष्टि से सही व्यवहारों को परिभाषित करती है।

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