प्रारंभिक गठन
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (अभातशिप) की स्थापना नवम्बर, 1945 में राष्ट्रीय-स्तर के शीर्षस्थ परामर्श निकाय के रूप में की गई थी जिसका उद्देश्य तकनीकी शिक्षा के लिए उपलब्ध सुविधाओं पर सर्वेक्षण संचालित करना तथा एक समन्वित और एकीकृत तरीके से उसके विकास को प्रोत्सिाहित करना था और साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में यथानिर्धारित मूल्यों का अनुपालन सुनिश्चित करना था। अभातशिप को निम्नलिखित शक्तियां सौपी गई:
• यह सन्न्यिमों और मानकों की आयोजना करने, उन्हें तैयार करने और उनका अनुरक्षण करने के लिए सांविधिक प्राधिकरण है।
• प्रत्यायन के माध्यम से गुणवत्ता आश्वासन सुनिश्चित करना:
• प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में वित्त-पोषण, निगरानी और मूल्यांकन करना:
• प्रमाणन और डिग्रियों आदि प्रदान किए जाने में समानता बनाए रखना:
• देश में तकनीकी शिक्षा का प्रबंधन
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1943
केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार मंडल की तकनीकी शिक्षा समिति का गठन
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1944
सार्जेंट रिपोर्ट तैयार की गई
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1945
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (अभातशिप) का गठन

राष्ट्रीय कार्यकारी समूह की भूमिका
भारत सरकार (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) ने तकनीकी शिक्षा के प्रचार-प्रसार, मानको के अनुरक्षण तथा अन्य संबंधित मामलों के संदर्भ में अभातशिप की भूमिका की जांच करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यकारी समूह भी गठित किया। कार्यकारी समूह ने अनुशंसा की कि अभातशिप को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इसे आवश्यक सांविधिक प्राधिकार प्रदान किए जाएं जिसके लिए बाद में इसके पुन र्गठन और आवश्यक अवसंरचनाओं और प्रचालन तंत्रों के माध्यम से इसे सुदृढ़ बनाए जाने की आवश्यकता होगी।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (अभातशिप) अधिनियम 1987
(संसद के दोनों सदनों द्वारा संख्य 1987 का 52 के रूप में पास किया गया)
अभातशिप अधिनियम ,अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् की स्थापना को उपलब्ध करने के लिए पारित किया गया था जिसकी स्थापना समूचे देश में तकनीकी शिक्षा प्रणाली की समुचित आयोजना और समन्वित विकास करने , योजनाबद्ध परिमाणात्मक विकास के संदर्भ में ऐसी शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण सुधार का संवर्धन करने और तकनीकी शिक्षा प्रणाली में सन्नियमों और मानकों का विनियमन और समुचित अनुरक्षण करने तथा उससे संबंधित मामलों के उद्देश्य लिए की गई ।
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अभातशिप (परिषद्) के क्षेत्राधिकार में विभिन्न स्तरों पर तकनीकी शिक्षा के कार्यक्रम शामिल हैं जिसमें इंजीनियरी, प्रौद्योगिकी, वास्तुकला, नगर आयोजना, प्रबंधन , भेषजी, अनुप्रयुक्त कला एवं शिल्प, होटल प्रबंधन और खानपान प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण और अनुसंधान शामिल है।