विहंगावलोकन

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'छात्र' शब्द लैटिन के द्वितीय प्रकार की योजक क्रिया 'स्टूडेरे' से मध्य अंग्रेजी से व्युत्पत्ति द्वारा लिया गया है जिसका अर्थ है 'किसी के जोश को निर्देशित करना अत: छात्र को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि जो "अपने जोश को किसी विषय पर निर्देशित करे।" इसके व्यापक प्रयोग में छात्र का प्रयोग ऐसे व्यक्ति के रूप में होता है जो शिक्षा ग्रहण कर रहा है।

सीखना और बढ़ते हुए

सीखने का अर्थ है नया ज्ञान, व्यवहार, कौशल, मूल्य अथवा अधिमान अर्जित करना। इसमें विभिन्न प्रकार की जानकारी का प्रक्रमण शामिल हो सकता है। सीखने की क्रियाएं भिन्न-भिन्न प्रकार की शिक्षण प्रक्रियाओं द्वारा निष्पादित की जा सकती हैं, जो शिक्षण के विषय/अभिकर्ता, की मानसिक सक्षमता, व्यक्ति द्वारा अर्जित किए जाने वाले ज्ञान के प्रकार तथा सामाजिक-नैसर्गिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर होता है।

मानव का सीखना शिक्षा अथवा वैयक्तिक विकास के रूप में उत्पन्न हो सकता है। यह लक्ष्योन्मुखी हो सकता है अथवा प्रेरणा द्वारा समर्थित हो सकता है। सीखना कैसे प्रारंभ होता है, इसका अध्ययन तंत्रिका-मनोविज्ञान, शैक्षणिक मनोविज्ञान, अधिगम सिद्धांत और शिक्षा-शास्त्र का भाग है।

सीखना, अभ्यास अथवा प्राचीन अनुकूलता के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकता है जैसा कि अनेक पशु प्रजातियों में देखा जाता है अथवा यह अधिक जटिल क्रियाकलापों के फलस्वरूप जैसे खेल द्वारा भी उत्पन्न होता है जिसे केवल सापेक्षी बुद्धिमान पशुओं और मनुष्यों में देखा जाता है। सीखना चेतन अथवा बिना चेतन जागरूकता में भी उत्पन्न हो सकता है। जनकीय तौर पर सीखने के मानवीय व्यवहारों के उदाहरण विद्यमान हैं जिनमें अभ्यास को 32 सप्ताह के भीतर परिणिती में परिवर्तित होते देखा जा सकता है, जो यह दर्शाता है कि केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र पर्याप्तत: विकसित है तथा सीखने के लिए तैयार है और विकास में अत्यंत पूर्व अवस्था पर स्मृति विद्यमान होती है।

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