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2001 की जनगणना के अनुसार एक स्वतंत्र समूह के रूप में महिलाएं देश की कुल जनसंख्या के 48 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करती हैं।

महिलाओं की अधिकारिता

राष्ट्रीय पदानुक्रम में महिलाओं की अधिकारिता के परिमाण का अवधारण मुख्यत: तीन कारकों द्वारा किया जाता है - उसकी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पहचान तथा उनका महत्व। ये कारक अनेक क्रॉस कटिंग संपर्कों के साथ परस्पर जुड़े और संबद्ध हैं जो यह दर्शाते हैं कि यदि किसी भी एक आयाम में प्रयास अनुपस्थित अथवा कमजोर हैं, तो अन्य अवयवों द्वारा उत्पन्न परिणाम और आवेग को अनुरक्षित नहीं रखा जा सकता है क्योंकि वे किसी भी परिवर्तन अथवा बदलाव को क्रियान्वित करने में समर्थ नहीं होंगे। केवल तभी किसी महिला को सही मायनों में अधिकारिता प्राप्त माना जाएगा जब इन तीनों अवयवों का एक साथ निवारण किया जाएगा और सामंजस्यपूर्ण बनाया जाएगा। अत: महिलाओं की व्यावहारिक अधिकारिता को समर्थ बनाने के लिए किसी महिला के जीवन को प्रभावित करने वाले सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं को प्रभावी और अभिसारित होना चाहिए।

women empowerment

संवैधानिक उपबंध

2001 की जनगणना के अनुसार एक स्वतंत्र समूह के रूप में महिलाएं देश की कुल जनसंख्या के 48 प्रतिशत भाग का निर्माण करती हैं। एक महत्वपूर्ण मानव संसाधन के रूप में महिलाओं के महत्व को भारत के संविधान द्वारा मान्यता प्रदान की गई है जो न केवल महिलाओं को समानता प्रदान करता है, अपितु राज्य को उनके पक्ष में सकारात्मक परिवेश का सृजन करने के लिए उपाय करने हेतु अधिकारिता भी प्रदान करता है। संविधान के अनेक अनुच्छेद विशेष रूप से महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रति तथा उनके राजनीतिक अधिकारों को बनाए रखने और निर्णय लेने में उनकी प्रतिभागिता सुनिश्चित करने के प्रति संविधान की प्रतिबद्धता को दोहराते हैं।

बालिकाएं - ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना

योजना आयोग ने सचिव, महिला और बाल विकास मंत्रालय की अध्यक्षता के ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिए 'बाल विकास' पर एक कार्यकारी समूह गठित किया है जिसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के संरक्षण, कल्याण और विकास के लिए कार्यक्रमों के साथ विद्यमान दृष्टिकोणों और कार्यनीतियों की समीक्षा करना तथा ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिए सुझाव/सिफारिशें करना है।

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महिला अधिकारिता

राष्ट्रीय पदानुक्रम में महिलाओं की अधिकारिता के परिमाण का निर्धारण मुख्य रूप से राष्ट्रीय पदानुक्रम में महिलाओं की अधिकारिता के परिमाण का अवधारण मुख्यत: तीन कारकों द्वारा किया जाता है - उसकी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पहचान तथा उनका महत्व। ये कारक अनेक क्रॉस कटिंग संपर्कों के साथ परस्पर जुड़े और संबद्ध हैं जो यह दर्शाते हैं कि यदि किसी भी एक आयाम में प्रयास अनुपस्थित अथवा कमजोर हैं, तो अन्य अवयवों द्वारा उत्पन्न परिणाम और आवेग को अनुरक्षित नहीं रखा जा सकता है क्योंकि वे किसी भी परिवर्तन अथवा बदलाव को क्रियान्वित करने में समर्थ नहीं होंगे।

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महिला और बाल कल्याण मंत्रालय

महिला और बाल कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की स्थापना एक पृथक मंत्रालय के रूप में 30 जनवरी, 2006 को की गई थी। इससे पूर्व यह 1985 से मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत एक विभाग था।

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