संक्षिप्त परिचय
शैक्षणिक संस्थाओं में शिक्षक ही शिक्षा को निर्देशित करते हैं तथा अनेक विषयों का अध्यापन करते हैं जिनमें पठन, लेखन, गणित विज्ञान और इतिहास भी शामिल है। यह प्रक्रिया कभी-कभी विद्यालयी शिक्षा भी कहलाती है जब हम शिक्षण में शिक्षा को केवल कतिपय विषयों के रूप में ही निर्दिष्ट करते हैं, सामान्यत: उच्चतर शिक्षण की संस्थाओं में प्रोफेसरों के रूप में। यहाँ उन क्षेत्र वालों के लिए भी शिक्षा विद्यमान है जो विशिष्ट व्यावसायिक कौशल चाहते हैं, जैसे जो विद्यार्थी पायलट बनना चाहते हैं। इसके अलावा, औपचारिक स्तर पर विभिन्न प्रकार की शिक्षा भी संभव है, जैसे संग्रहालयों और पुस्तकालयों में इंटरनेट के साथ और जीवन के अनुभवों में। अनेक गैर-शैक्षणिक शिक्षा विकल्प आज उपलब्ध हैं तथा निरंतर विकसित हो रहे हैं।
शिक्षा का अधिकार
शिक्षा के अधिकार को 1952 से ही मूलभूत मानव अधिकार के रूप में स्थापित किया गया है। मानवाधिकार पर यूरोपीय कन्वेंशन के प्रथम प्रोटोकोल का अनुच्छेद 2 सभी हस्ताक्षरकर्ता पक्षकारों को शिक्षा के अधिकार की गारंटी देने का दायित्व प्रदान करता है। विश्व स्तर पर, संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार कोनवेंट, 1966 अपने अनुच्छेद 13 के अंतर्गत इस अधिकार की गारंटी देता है।
भारत ने अगस्त, 2009 में शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2009 पारित किया
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में शिक्षा
सामाजिक और आर्थिक प्रगति को सुकर बनाने में शिक्षा की भूमिका को पर्याप्तत: पहचाना गया है। यह अनेक अवसरों को खोलती है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्तियों और समूहों, दोनों की पात्रताओं में वृद्धि होती है।
अधिक पढ़ेंग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में महिलाओं को सशक्त बनाना
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में महिलाओं को सशक्त बनाना (नीचे इसका वर्णन किया गया है) सिविल समाज की एक पहल है जिसका समन्वय महिला और बाल विकास मंत्रालय (एनएडब्ल्यूओ), यूएन विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और यूएन महिला विकास निधि (यूएनआईएफईएम) के सहयोग से नेशनल एलाएंस ऑफ वीमेन (एनएडब्ल्यूओ) द्वारा किया जाता है।
अधिक पढ़ेंउच्च शिक्षा - ग्यारहवीं योजना
सरकार द्वारा 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के क्रियान्वयन के साथ ही देश में उच्च शिक्षा का योजनाबद्ध विकास प्रारंभ करने की सरकार की पहल को आधी शताब्दी से अधिक समय बीत चुका है।
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